हिंदी साहित्य का इतिहास विभिन्न युगों में विभाजित है, जिनमें प्रत्येक युग की अपनी विशिष्ट विशेषताएँ हैं। इन्हीं युगों में एक प्रमुख युग है रीतिकाल, जो लगभग सन् 1700 ई. से 1900 ई. तक माना जाता है। यह युग विशेष रूप से रीति ग्रंथों, श्रृंगार रस, दरबारी संस्कृति और अलंकार-प्रधान शैली के लिए प्रसिद्ध है।
रीतिकाल का नामकरण विषय साहित्यिक विमर्श का एक महत्वपूर्ण भाग है क्योंकि विभिन्न विद्वानों ने इसे अलग-अलग दृष्टिकोण से देखा है। आइए विस्तार से जानें कि रीतिकाल को किन-किन नामों से जाना गया, और किस नामकरण को सर्वाधिक मान्यता प्राप्त हुई।
📚 रीतिकाल का परिचय
रीतिकाल को हिंदी साहित्य का "शास्त्रीय युग" या "दरबारी युग" भी कहा जाता है। इस काल में कवि मुख्यतः राजाओं और सामंतों के आश्रय में रहकर रचनाएँ करते थे। इसलिए उनकी रचनाओं में राजा की प्रशंसा, नायिका भेद, प्रेम, सौंदर्य और श्रृंगार रस की प्रधानता मिलती है।
इस युग की प्रमुख प्रवृत्तियाँ थीं:
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रीति ग्रंथों की रचना
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श्रृंगार रस की प्रधानता
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अलंकारों का व्यापक प्रयोग
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नायिका भेद और रूप-सज्जा का वर्णन
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राजाश्रय में कविता रचना
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शास्त्रीयता और कला का परिष्कार
🔎 रीतिकाल का नामकरण: विद्वानों के विभिन्न मत
1️⃣ अलंकृतकाल – मिश्रबन्धु का मत
नाम: अलंकृतकाल
प्रस्तावक: मिश्रबन्धु
तर्क:
मिश्रबन्धुओं ने कहा कि रीतिकाल के कवियों ने काव्य को अलंकारों से सजाने में विशेष रुचि ली। इस समय अलंकार निरूपक ग्रंथों की भरमार थी जैसे:
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कविप्रिया और रसिकप्रिया – केशवदास
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भाषा भूषण – महाराजा जसवंत सिंह
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ललित ललाम – मतिराम
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अलंकार माला – सूरति मिश्र
इन ग्रंथों में रस, अलंकार और नायिका भेद को विशेष स्थान मिला। इसलिए इस काल को अलंकृतकाल कहा गया।
आपत्ति:
हालांकि यह तर्क सटीक लगता है, पर यह नाम केवल बाह्य कलात्मकता को दर्शाता है। इस युग में भाव, रस और सामाजिक संदर्भ भी महत्वपूर्ण थे। केवल अलंकारों पर ज़ोर देना इस युग की बहुआयामीता के साथ न्याय नहीं करता।
2️⃣ कलाकाल – रमाशंकर शुक्ल 'रसाल' का मत
नाम: कलाकाल
प्रस्तावक: रमाशंकर शुक्ल 'रसाल'
तर्क:
रसाल जी के अनुसार यह युग कला का चरम युग था। स्थापत्य कला (ताजमहल), चित्रकला, संगीत, और कविता – सभी में सौंदर्य की उच्चतम अभिव्यक्ति हुई। कवियों ने विषय से अधिक ध्यान शैली और कला सौंदर्य पर दिया।
आपत्ति:
‘कलाकाल’ नाम व्यापक होते हुए भी विषयवस्तु को नहीं दर्शाता। इस नाम से न तो काव्य के मुख्य उद्देश्य स्पष्ट होते हैं और न ही इसकी साहित्यिक प्रवृत्तियाँ। अतः यह नामकरण अधूरा माना गया।
3️⃣ श्रृंगारकाल – पं. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र का मत
नाम: श्रृंगारकाल
प्रस्तावक: पं. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र
तर्क:
इस युग की कविताओं में प्रमुख रूप से श्रृंगार रस का प्रयोग हुआ। नायिका भेद, सौंदर्य वर्णन, प्रेम, साज-सज्जा आदि इस युग की मुख्य विशेषताएँ थीं। दरबारी संस्कृति के अनुरूप कवियों ने श्रृंगार प्रधान काव्य रचा।
आपत्ति:
यह सही है कि श्रृंगार रस इस युग में प्रमुख था, लेकिन इसके साथ-साथ वीर रस, नीति, भक्ति, और राजभक्ति की रचनाएँ भी प्रचुर मात्रा में लिखी गईं। साथ ही श्रृंगार रस भी स्वतंत्र नहीं, बल्कि रीति और अलंकारों पर आधारित था। अतः ‘श्रृंगारकाल’ नाम एकांगी प्रतीत होता है।
4️⃣ रीतिकाल – आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का मत
नाम: रीतिकाल
प्रस्तावक: आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
तर्क:
शुक्ल जी के अनुसार इस काल की सबसे प्रमुख विशेषता है – रीति ग्रंथों की परंपरा और काव्य की शास्त्रीय पद्धति। इस युग में रचे गए कवि केवल रस और अलंकारों के दार्शनिक विवेचक नहीं थे, बल्कि सजग भावुक रचनाकार थे।
शुक्ल जी के अनुसार –
"इस युग के कवियों ने रसों (विशेषतः श्रृंगार) और अलंकारों के अत्यंत सरस और हृदयग्राही उदाहरण दिए हैं।"
स्वीकृति:
शुक्ल जी के इस नामकरण को अधिकांश विद्वानों ने स्वीकार किया है। जैसे:
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डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी
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डॉ. नगेन्द्र
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रामविलास शर्मा
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डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी
विशेष बात:
‘रीतिकाल’ शब्द इस युग की लगभग सभी प्रमुख प्रवृत्तियों को समेटता है – रीति, रस, अलंकार, शैली, राजाश्रय, श्रृंगार, कला और दरबारी संस्कृति। यह नाम न केवल व्यापक है, बल्कि वैज्ञानिक और संतुलित भी है।
📝 निष्कर्ष (Conclusion)
रीतिकाल का नामकरण केवल शब्द चयन नहीं, बल्कि साहित्यिक दृष्टिकोण और ऐतिहासिक समझ का विषय है। मिश्रबन्धुओं का ‘अलंकृतकाल’, रसाल जी का ‘कलाकाल’, और मिश्र जी का ‘श्रृंगारकाल’ – सभी अपने स्थान पर तर्कसंगत हैं, लेकिन इन नामों में या तो एक पक्ष की अधिकता है या अन्य पक्षों की उपेक्षा।
वहीं, ‘रीतिकाल’ नाम सबसे संतुलित और सर्वांगीण प्रतीत होता है। यह न केवल साहित्य की शास्त्रीय परंपरा, अलंकार, रस और शैली को दर्शाता है, बल्कि इस युग की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजकीय पृष्ठभूमि को भी समझाता है।
इसलिए यह कहना उचित है कि –
✅ “रीतिकाल” ही इस युग का सर्वमान्य, वैज्ञानिक और तर्कसंगत नाम है।
📚 संदर्भ ग्रंथ (References)
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हिंदी साहित्य का इतिहास – आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
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कविता के बदलते प्रतिमान – डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी
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हिंदी काव्यशास्त्र का विकास – डॉ. नगेन्द्र
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मिश्रबन्धु ग्रंथावली
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डॉ. रामविलास शर्मा की साहित्यिक समीक्षाएँ