प्रस्तुत खंड की पहली इकाई में हिन्दी साहित्य के इतिहास का अध्ययन किया जाएगा। इसके अतिरिक्त हिन्दी साहित्य का काल विभाजन नामकरण पर विस्तृत चर्चा इस अध्याय में की गयी है। काल विभाजन और नामकरण के संबंध में विभिन्न विद्वानों और आचार्यों के मत भी इस अध्याय में दिये गये हैं। ताकि इस इकाई का अध्ययन कर विद्यार्थी बोध प्रश्नों का उत्तर आसानी से प्राप्त कर सकेंगे।किसी भी साहित्य के इतिहास का काल-विभाजन करने की सर्वाधिक उपयुक्त प्रणाली उस साहित्य में प्रवाहित साहित्य धाराओं, विविध प्रवृत्तियोंके आधार पर उसे विभाजित करना है। युग की परिस्थितियों के अनुकूल साहित्य की विषय तथा शैलीगत प्रवृतियाँ परिवर्तित होती रहती है। हिन्दी साहित्य के विषय में भी यही बात युक्तियुक्त प्रतीत होती है।
हिन्दी साहित्य का इतिहास सर्वप्रथम लिखने का श्रेय एक फ्रेंच विद्वान गार्सा द तासी को दिया जाता है। इन्होंने फ्रेन्च भाषा में 'इसवार द ला सितरेत्युर रहुई ए हिन्दुस्तानी' नामक ग्रन्थ में अंग्रेजी वर्ण क्रमानुसार हिन्दी और उर्दू भाषा के अनेक कवियों का परिचय दिया है। परन्तु उन्होंने भी कलविभाजन और नामकरण की ओर ध्यान नहीं दिया था। इस परम्परा का दूसरा महत्वपूर्ण ग्रन्थ हिन्दी विद्वान शिवसिंह सेंगर का 'शिवसिंह सरोज' है। इसमें लगभग एक हजार भाषा-कवियों के जीवन चरित्र और इनकी कविताओं के उदाहरण संग्रहित किये है किंतु काल विभाजन का इसमें कोई संकेत नहीं है।
इस सम्बन्ध में सबसे पहला प्रयास करने का श्रेय जार्ज ग्तियर्सन को है। पर जैसा कि उन्होंने स्वयं अपने ग्रन्थ की भूमिका में स्वीकार किया है, उनके सामने अनेक ऐसी कठिनाइयाँ थी जिससे वे काल-क्रम एवं काल विभाजन के निर्वाह में पूर्णतः सफल नहीं हो सके। उन्होंने लिखा है - "सामग्री को यथा संभव कालक्रमानुसार प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। यह सर्वत्र सरल नहीं रहा है और कतिपय स्थलों पर तो यह असंभव सिद्ध हुआ है। इन्होंने हिन्दी साहित्य के इतिहास को निम्नलिखित ग्यारह शीर्षकों के अंतर्गत विभाजित किया है।